आमेर के राजा भारमल का पौत्र, 6 दिसम्बर 1550 को इनका जन्म हुआ।भगवानदास की मृत्यु हो जाने के बाद 14 नवम्बर 1589 को आमेर की राजगद्धी पर...
आमेर के राजा भारमल का पौत्र, 6 दिसम्बर 1550 को इनका जन्म हुआ।भगवानदास की मृत्यु हो जाने के बाद 14 नवम्बर 1589 को आमेर की राजगद्धी पर बैठा।
मानसिंह अकबर का एक प्रसिद्ध मनसबदार एवं मुख्य सेनापति था।मानसिंह अकबर के नवरत्नों में से एक था। मानसिंह को अकबर ने फर्जन्द तथा राजा की उपाधि से सम्मानित किया।
मानसिंह के सम्पर्क में आने पर अकबर ने हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचार को बन्द करवा दिया।
मानसिंह ने अकबर के आग्रह पर दीन-ए-इलाही धर्म स्वीकार नहीं किया था।
21 जून 1576 ई. को हल्दीघाटी का युद्ध मुगलों की ओर से मानसिंह के नेतृत्व में लड़ा गया। मानसिंह के कारण ही अकबर को राणा प्रताप के विरूद्ध सफलता प्राप्त हुई।
मानसिंह के प्रमुख दरबारी कवि हाया बारहठ थे।
मानसिंह के प्रसिद्ध साहित्यकार पुण्डरीक विट्ठल ने रागमंजरी, रागचन्द्रोदय, नर्तन निर्णय, चूनी प्रकाश की रचना की।
मुरारीदास ने ‘मानप्रकाश‘ तथा जगन्नाथ ने ‘मानसिंह कीर्ति मुक्तावली‘ की रचना की। दलपत राज ने ‘पत्र प्रशस्ति‘ तथा तथा ‘पवन पश्चिम‘ की रचना की।
दादूदयाल ने मानसिंह के काल में वाणी की रचना की।
मानसिंह द्वारा बंगाल में अकबर नगर और मानपुर नामक दो नगरों की स्थापना की गई।
शिलादेवी, जगत शिरोमणी व गोविन्ददेव जी के मंदिरों का निर्माण आमेर में करवाया। 1586 ई. में मानसिंह बंगाल विजय के पश्चात् आमेर में शिलादेवी को लाया और अरावली की पहाड़ी पर इनका प्रसिद्ध मंदिर स्थापित किया।
इसके अतिरिक्त काशी में ‘मान मंदिर‘ व सरोवर घाट, वृन्दावन में 5 लाख की लागत का ‘गोविन्द मंदिर‘ पटना में ‘बैकुण्ठ मंदिर‘ रोहतासगढ में महल व अटक के पास ‘कटक बनारस‘ नामक किला वनवाया।
मानसिंह ने अकबर की मृत्यु के बाद जहाॅंगीर की जगह बादशाह बनाने में खुशरो का समर्थन किया था।
मानसिंह की मृत्यु 6 जुलाई 1614 में इलीचपुर (दक्षिण भारत) नामक स्थान पर हुई।